प्रदीप्त भट्टाचार्य
प्रदीप्त भट्टाचार्य कोलकाता, भारत में कार्यरत एक प्रतिष्ठित फिल्मकार, पटकथा लेखक, निर्माता और संपादक हैं, जिनका रचनात्मक कार्य सिनेमा के विविध रूपों और विधाओं में फैला हुआ है। पश्चिम बंगाल के एक छोटे ऐतिहासिक नगर, बहारमपुर में जन्मे और पले-बढ़े प्रदीप्त अपनी कथाओं में सांस्कृतिक और भावनात्मक परिदृश्यों के प्रति गहरी संवेदनशीलता लेकर आते हैं। उन्होंने रूपकला केंद्र, कोलकाता से फिल्म संपादन में स्नातक डिग्री (2002–2004) प्राप्त की और वर्ष 2004 से सिनेमा के क्षेत्र में सक्रिय रूप से कार्यरत हैं।
पिछले दो दशकों में प्रदीप्त ने तीन फीचर फिल्में, टेलीविजन के लिए चार फीचर-लेंथ फिल्में, दस लघु फिल्में, दो दीर्घाकार वृत्तचित्र, दो वेब सीरीज़ तथा अनेक कार्यशाला-आधारित परियोजनाओं का निर्देशन किया है। एक संपादक के रूप में उनके विस्तृत कार्य-पोर्टफोलियो में सौ से अधिक फिल्में शामिल हैं, जिनमें फीचर फिल्में, लघु कथात्मक फिल्में, वृत्तचित्र, एनीमेशन, वीडियो आर्ट और प्रयोगधर्मी सिनेमा सम्मिलित हैं। उनके निर्देशन की पहचान एक शांत गहनता और सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि से होती है, जिसमें स्मृति, पहचान और दैनिक जीवन की अंतरंग लयों जैसे विषयों की खोज की जाती है। बंगाल की सामाजिक-सांस्कृतिक संरचना में गहराई से निहित उनकी फिल्में प्रामाणिकता और भावनात्मक सूक्ष्मता के साथ दर्शकों से संवाद करती हैं।
रचनात्मक कार्यों के साथ-साथ प्रदीप्त फिल्म शिक्षा के प्रति भी गहराई से प्रतिबद्ध हैं। वे रूपकला केंद्र, सत्यजीत रे फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (एसआरएफटीआई), विश्व-भारती विश्वविद्यालय, कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबद्ध विभिन्न महाविद्यालयों तथा जादवपुर विश्वविद्यालय सहित कई शैक्षणिक और प्रशिक्षण संस्थानों से जुड़े हुए हैं। वे नियमित रूप से निर्देशन और संपादन पर कक्षाएँ एवं कार्यशालाएँ संचालित करते हैं तथा युवा फिल्मकारों का मार्गदर्शन करते हैं। इसके अतिरिक्त, वे ग्रामीण और उपनगरीय बंगाल में फिल्म समारोहों और स्क्रीनिंग का आयोजन भी करते हैं, जिससे सिनेमा तक पहुँच का लोकतंत्रीकरण हो सके और उन क्षेत्रों में फिल्म संस्कृति के प्रति गहरी समझ विकसित हो, जहाँ सिनेमाई अनुभव सीमित रहा है। वे समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में सिनेमा पर नियमित रूप से लेखन भी करते हैं, जिससे फिल्म और मीडिया पर व्यापक सार्वजनिक विमर्श को बल मिलता है।
उनकी पहली फीचर फिल्म पर आधारित एक समीक्षित शोध-लेख — “Interweaving Dystopian and Utopian Spaces, Constructing Social Realism on Screen: Bakita Byaktigato / The Rest is Personal” — वर्ष 2019 में ओपन लाइब्रेरी ऑफ ह्यूमैनिटीज़ जर्नल (खंड 5, अंक 1) में प्रकाशित हुआ।
उनकी पहली फीचर फिल्म बकिता व्यक्तिगतो (The Rest is Personal) को वर्ष 2013 में सर्वश्रेष्ठ बंगाली फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त हुआ। उनकी दूसरी फीचर फिल्म राजलक्ष्मी ओ श्रीकांत वर्ष 2019 में प्रदर्शित हुई। उनकी नवीनतम फिल्म द स्लोमैन एंड हिज़ राफ्ट (नाधरेर भेला) का विश्व प्रीमियर वर्ष 2025 में रॉटरडैम अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में हुआ। यह कोलकाता अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव 2025 में चयनित एकमात्र भारतीय फिल्म थी, जहाँ इसे अत्यधिक सराहना मिली, और बाद में इसने वर्ष 2025 में टोरंटो में आयोजित आईएफ़एफ़एसए में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार भी जीता।











